मेरी परी
प्रिय सुनील ,
कैसे हैं आप ? आशा करती हूँ कि आप दिन प्रतिदिन अपनी नई नौकरी में तरक्की की सीढ़ी चढ़ रहे होंगे और एक दिन सफलता की नई इबादत लिखेंगे. आपके हर ख्वाब जल्द पूरे हों , ऐसा मैं ईश्वर से हर रोज प्रार्थना करती हूँ . आपको जानकर खुशी होगी कि आपकी बेटी आज पूरे 07 माह की हो गई है. 'मेघा ' की नटखत हरकतें मुझे मेरे बचपन की याद दिला देती हैं. काश आप भी यहाँ होते तो मेघा की मासूम किलकारियों , उसकी मासूमियत को महसूस कर हर्षोल्लास से भर उठते और शायद मेघा के साथ - साथ मुझे भी आपका साथ मिल जाता .
माँजी भी सकुशल हैं पर शायद अभी भी मुझसे ख़फा हैं. उन्हें मुझसे आशा थी कि मैं उनकी पीढ़ी को आगे बढा़ने के लिए उन्हें एक पुत्र दूँगी. पर यह मेरे हाथ में नहीं. अमूमन लोगों के घर यदि पुत्र नहीं पुत्री जन्म लेती है तो लोग ' लक्ष्मी ' कह कर उस नवजात शिशु का स्वागत करते हैं. पर माँजी जिस नफरत व घृ्णा से मेरी मासूम मेघा को देखती हैं, मेरी रुह काँप उठती है और न चाहते हुए भी मेघा के जन्म के समय की वो कड़वी यादें परत दर परत मेरी आँखों के समक्ष खुलती जाती हैं.
मुझे आज भी याद है जब मैंने मेघा को जन्म दिया था तब नर्स व डॉक्टर ने मुझे बधाई देकर कहा कि नन्हीं सी परी का आगमन हुआ है आपके जीवन में. पर माँजी ने जैसे ही मेरी बच्ची को देखा तो बिना किसी देर के उनके मुँह से निकले शब्द मुझे आज भी कचोटते हैं. " कुल्टा ने डायन को जन्म दिया है, सबको खा जाएगी ये डायन ".............. 'डायन' - हाँ, यही शब्द मेरी बेटी को मिला था , उसकी अपनी दादी से . मैं उसी वक़्त समझ गई थी कि मेरे और मेरी बेटी के लिए ज़िंदगी आसान नहीं.
माँजी उसी वक़्त मुझे अस्पताल में छोड़ चली गईं. मैं पूरे तीन दिन तक इंतज़ार करती रही पर घर से कोई न आया. माँजी ने तो मेरे लिए खाना भिजवाना भी उचित न समझा. तीन दिन तक मैं बेवकूफ इस इंतज़ार में पड़ी रही कि शायद कोई आए और मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरे और मुझे माँ बनने के लिए बधाई दे पर कोई न आया. आखिरकार मैं , बेशर्म खुद ही किसी तरह घर पहुँची.
मुझे अभी घर पहुँचे दस मिनट भी न हुए होंगे कि माँजी ने मुझे सख़्त आदेश दिए थे कि मेरा रसोई में जाना वर्जित है क्योंकि मैं अशुद्ध हूँ. माँजी ने रसोई व फ्रिज पर ताला डाल दिया था . अनाथ हूँ , माँ- बाप का देहांत हो चुका है . अत: मायके कैसे जाती ? तब अपना और अपनी बेटी का पेट भरने के लिए अपना मंगलसूत्र बेचा था. सुहाग की निशानी को बेच कर मेरी आत्मा मृ्त हो गई थी पर सुहाग की निशानी को बचाने के लिए अपनी ममता का , एक माँ के दायित्वों का गला कैसे घोंट देती ?
माँजी ने जब मेरा और मेरी बेटी का खर्चा उठाने से साफ मना कर दिया तब मैंने नौकरी करने का फैसला किया . अपनी बेटी को अपने साथ हर पल रखती हूँ . हालाँकि वो अभी इतनी छोटी है कि मेरे जीवन की कठिन परिस्थितियाँ हर दिन मेरी बेटी के लिए जीवन व मौत में से एक को चुनने का विकल्प देती है पर मेरी बेटी अबोध होने के बावजूद बेहद बहादुर है. वो हर वक़्त अपनी माँ का साथ देती है, मौत को मात देती है. उस दिन को मैं आज भी याद करती हूँ तो आत्मा काँप उठती है जब माँजी ने मेरे कमरे में लगे कूलर के पास अंगीठी में मिर्च सुलगा दी थी . थोड़ी देर बाद पूरे कमरे में मिर्च का घुँआ भर गया जिससे मेरी और मेरी बेटी की हालत बिगड़ गई थी . पता नहीं वो कौन सी शक्ति थी जिसने मेरी और मेरी बेटी की रक्षा करी. उस दिन के बाद से मैंने एक पल भी अपनी बेटी को खुद से अलग नहीं किया . सिर पर कफन बाँध कर , सफेद कफन की ओढ़नी ओढ़ कर , अपनी बेटी को अपनी पीठ पर बाँध कर मैं हर रोज जीवन के संघर्षों का सामना करती हूँ.
मुझे खुद पर और अपनी बेटी पर गर्व है . हम माँ- बेटी हर रोज बदकिस्मती को , अपने जीवन के दुर्भाग्य को मुँह चिढ़ाते हुए जीवन पथ पर अग्रसर हैं. मेरी बेटी मेरी कमज़ोरी नहीं , वो मेरी ताकत है . माँजी की नफरत एक दिन उनके समक्ष वो चुनौती पैदा करेगी जब उन्हें इस बात का अहसास होगा कि इंसान के बुरे कर्मों की आग का घुँआ इंसान को घुटा- घुटा के इस कदर दर्दनाक मौत देता है जिसकी परिकल्पना शायद ही कभी किसी ने की हो . मैं माँजी को कभी माफ नहीं करुँगी क्योंकि मेरी बेटी के जन्म को लेकर उन्होंने अपना वो रुप मेरे समक्ष प्रस्तुत किया है जिससे औरतज़ात तक शर्मसार हो जाए . माँजी को औरत कहना औरत ज़ात के मुँह पर तमाचा है . माँजी ने मेरी बेटी के जन्म पर उसे डायन कहा , उसको मिर्च के घुँए से घुटा- घुटा कर मारने की कोशिश करी , उनकी इन हरकतों ने यह साबित किया है कि माँजी औरत नहीं बल्कि दुनिया की सारी गंदगी को अपने अस्तित्व में धारण करने वाली एक गाली हैं, जो सिर्फ और सिर घृ्णा के लायक है.
आपकी आभागी
मृ्दुला .
- शालिनी अवस्थी ( Shalini Awasthi )
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